Manish Mundra
Sunday, 5 July 2009
ज़िन्दगी से रूबरू.....
ज़िन्दगी से रूबरू हो यह तम्मना है
मुस्कुराहटों से मुखातिब हो ये तम्मना है
पर ग़मों के दायरे में रहती है मुस्कुराहटें
देखें ये दायरे कब सिमटे हैं, कब ज़िन्दगी से रूबरू होतें है
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